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मन की ज़मीं,,,,,

इस ख़ुदाई की कारीगरी भी क्या कहिये जनाब, किसी पत्थर में मूरत है, कोई पत्थर की मूरत है, पत्थर के सनम भी यहीं हैं, पत्थर के देवता भी यहीं,,...

मुझे और तराशा जाए !

बेवजह दिल पे कोई बोझ ना भारी रखिए , ज़िन्दगी जंग है इस जंग को जारी रखिए ! मेरे टूटने की वज़ह मेरे जौहरी से पूछिये ! उसकी ख्वाहिश है मु...

समाँ है ये तर-बतर-सा,,,,,

समाँ है ये तर-बतर-सा रुत भी है भीगी-भीगी सी धुले-धुले से सब शज़र हैं फ़िज़ा भी है ये निखरी-सी| शैदाई अब्रे सियाह भटकते जहँ-तहँ बरसते...

चलें दूSर पर्बतों के पार,,,,,,

आइये मित्रगण! आज एक अलबेली पिकनिक हो जाए | चलें दूSर पर्बतों के पार मचलती लहरों से भर मुट्ठी मस्ती लें सागर के अंतस से ढेर मोती समे...

ये मन भी ना,,,,,

ये मन भी ना???? कभी अनमना, तो कभी खिला-खिला मन ना हुआ, राधा के जूडे का फूल हो गया! कभी कृष्ण-सा बांसुरी बजाता, कभी बुद्ध-सा मुस्का...

बूंदों की रिमझिम

खिड़की के बाहर बूंदों की रिमझिम बन रस की फुहार मिसरी घोल रही है बाहर जल-थल भीतर अंतस-थल प्रफुल्लित हो रहा है | तन-मन की थकन बरखा क...