Hindi Shayari and Poems |
स्वाति नक्षत्र में बरसी बूँदें
कतिपय सीपियों ने मोती जन्मे,
सुन्दर-चमकीले मोती
ऐसे जिनसे नज़र ना फिसले |
पर दूजी ओर थीं कुछ ऐसी
जिन्हें शिकायत बूंदों से थी
क्यों उनमें ना जन्मे मोती?
क्यों गुहार उनकी ना सुनी?
स्वाति की बूँदें मुस्काईं
फिर बोली वे यूँ कुछ ऐसे-
जिनका था मुँह खुला हुआ
जिनमें थी वो पात्रता
उनकी झोली ही भर पाई |
जिन सीपों ने मुँह नहीं खोले,
वे ही खाली हाथ रह गईं,
आगे भी वे यूँ ही रहेंगी
इसी शिकायत संग जियेंगी|
यही शिकायत मानव की भी
ईश्वर से रहती है हरदम,
भक्ति, उपासना, पूजा पर भी
क्यों रहती है झोली ख़ाली?
शिकवा अपनी जगह पे कायम
सफ़ाई अपनी जगह पे जायज़,
जिसने ख़ुद को नहीं तराशा,
जिसने ख़ुद को नहीं तलाशा,
कैसे भरेगी झोली ख़ाली?
दोष जरा भी नहीं बूंदों का
भेद-भाव नहीं उनके मन में
जिसने किया ना प्रयत्न ज़रा भी
कैसे उसे प्रसाद मिलेगा?
कैसे बूँदें बनेंगी मोती?
_____हिमांशु महला