"इंसान
घर बदलता है,
लिबास बदलता है,
रिश्ते बदलता है,
दोस्त बदलता है |
अपनी कमियों के लिए
कभी,
घर बदलता है,
लिबास बदलता है,
रिश्ते बदलता है,
दोस्त बदलता है |
अपनी कमियों के लिए
कभी,
इसे दोषी बताता है,
कभी,
उसे कोसता है,
हज़ार बहाने बनाता है |
ये तोड़ता है,
वो फोड़ता है,
बड़ी दुःखद बात है कि
फिर भी ख़लिश नहीं जाती,
और
परेशान ही रहता है,,,,,,
क्यूँकि,
वह खुद को नहीं बदलता,,,,,"
मियाँ मिर्ज़ा ग़ालिब ने
कितना सही कहा था--
उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा,
धूल चेहरे पर थी, और आईना साफ़ करता रहा।
कभी,
उसे कोसता है,
हज़ार बहाने बनाता है |
ये तोड़ता है,
वो फोड़ता है,
बड़ी दुःखद बात है कि
फिर भी ख़लिश नहीं जाती,
और
परेशान ही रहता है,,,,,,
क्यूँकि,
वह खुद को नहीं बदलता,,,,,"
मियाँ मिर्ज़ा ग़ालिब ने
कितना सही कहा था--
उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा,
धूल चेहरे पर थी, और आईना साफ़ करता रहा।