-->

चलो, 
शाम के सुरमई उजाले में 
कहीं दूर तलक निकल जाएँ, 
सरसराती हवाओं संग
थोड़ा टहल आएँ,
डूबते सूरज की कुछ किरणें 
अपने आँचल में सहेज लाएँ,,,
 
चलो,
जहाँ मिलते हैं ज़मीं औ' आसमाँ,
सूरज के सिलसिले को
परबत पे छोड़ आएं, 
अपनी ये प्रीत सलोनी 
उफ़क़ पे उकेर आएँ,,
 
दिन भर की थकन को 
पोटली में बंद करके 
कुछ इस तरहा से फेंकें 
कि लौट के न आने पावे, 
ऊर्जा के नव स्रोत खोजें, 

चलो भी , थोड़ा टहल आएँ ||

Nemo enim ipsam voluptatem quia voluptas sit aspernatur aut odit aut fugit, sed quia consequuntur magni dolores eos qui ratione voluptatem sequi nesciunt.

Disqus Comments