इसी वजह से तो देश का बेडा गर्क है,,,
छिछले स्वार्थ,,,,बस |
उससे जुदा और कुछ नहीं |
ऋणात्मक सोच,,,
विघटनकारी कृत्य,,,
हर अवसर को अपने फ़ायदे के लिए
भुनाने की कोशिश करना,,,
शर्म आती है कई बार |
बड़ा दर्द होता है ये सोचकर कि
हया तो कहीं बची ही नहीं,,,
आँख का पानी पूर्णतः मर चुका है,,,
नैतिक मूल्य ही बदल चुके हैं,,,
देश-भक्ति, स्वाभिमान, सच्चाई,
ईमानदारी, परिश्रम, पर-उपकार,
शुक्रगुज़ारिता, समभाव, संवेदना,
सहिष्णुता, मेल-जोल, त्याग,
बलिदान, ईर्ष्या का अभाव,
विनम्रता, बड़प्पन, उदारता,
निःस्वार्थ सोच, आदि आदि,,,,
लगता है ये सभी भाव
विलुप्त होते जा रहे हैं
मानवीय चारित्रिक विशेषताओं से !!!