ऐ ज़िन्दगी!
हर पल जीना सिखाती है तू
मेरी हमसाया, मेरी हमनफस है तू,,,
कभी मुस्कुराती है
आँखों में काजल बनकर,,
कभी छलक जाती है
ओस की बूँदें बनकर,,,
छम-छम बरस पड़ती है
खुले मन-आँगन पे
कभी सावन के काले-
कजरारे बादल बनकर,,,
हर सू तुझे महसूसा
दिल से तुझे सराहा
बड़ी ही शिद्दत से
टूटकर चाहा है मैंने,,,
बहुत कुछ पाया है
बेहद अनमोल तुझसे,
तो बहुत ख़ास
बहुत कुछ खोया भी है,,,
तुझी पे ऐतबार किया,
आँख मूँद-मूँद कर
तो दिल पे रख पत्थर
तुझी से दामन चुराया है मैंने,,
न जाने कितने रूपों में
तेरा हर पल दीदार किया,,,
तेरी हर शै ने तराशा है
मेरे हर छोटे-बड़े तसव्वुर को,,,
जो कुछ भी हो,
ऐ ज़िन्दगी!
तुझे दिलो जाँ से
चाहा है मैंने |