मन के पूरब से
सूरज फिर उगा है |
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तेरी यादों की लालिमा लिए
धडकनें पंछी बन
उड़ चली हैं,
साँसें
सुगन्धित बयार-सी
रोम-रोम महकाती
बह चली हैं |
वो आसमाँ में उड़ता
नन्हा बादल
शरारत से मुस्कुरा रहा है |
मानों कह रहा हो --
तेरे दिल की तरंगों को
गीत में बदलते
देख लिया है |
तेरे दिल की धडकनों को
संगीत में बदलते
देख लिया है |
और जैसे कह रहा हो --
अब वहाँ तेरा क्या काम
चल आ जा,
मेरे संग उड़ चल
इस नीले अम्बर पर |
जहाँ दूर तलक
ना कोई ग़म,
ना ग़म का निशां |
उफ़क़ के दामन को
समझ ले अपना आशियाँ |
सुनकर उस नटखट की बातें
बेसाख़्ता लबों पर
तबस्सुम लहरा गया |
सदियों से सूनी अँखियों को
अनायास कोई भरमा गया |
और,,,
उड़ चली वह भी,,,
जहाँ था वह नन्हा बादल,,,
समझता-सा उसकी पीर को
सोचा,
गले लग उसके
अपने ग़मों को, पीर को
आँसुओं में ढाल बहा देगी,,,
बरसेंगे रिमझिम मेघ,
मल्हार तेरी यादों को बना देगी |
____हिमांशु