जीवन सरिता कल-कल बहती,
कुछ कहती-सी, कुछ सुनती-सी|
जो थी पहले अकथ कल्पना
लेती अब आकार हृदय में|
बैठ हृदय की नदी किनारे,
चुनती यादें साँझ सकारे,
दूर समय की धार हाथ ले
करती थी लहरों से बातें |
सहेज रही आँचल में अपने
ख्वाबों की धुंधली तस्वीरें
कुछ,तम में ज्यूँ सुखद ज्योत्सना
दिनकर से ज्यों गगन नीलिमा
अमराई-सी विकट धूप में,
मधुस्रोतों-सी हृदय कूप में|
कुछ थीं राधा-सी अनब्याहीं
कसक जगातीं मन में भारी,
बहती-कहती जातीं लहरें
रुदन भरे नयनों की पीरें |
देखो सिसकी-सी बहार है,
फूलों पर फफकी फुहार है,
दूर तलक अंधड़ बयार है,
हर सू उजड़ा-सा दयार है|
मत रोको, सब कह जाने दो,
अल्हड़ बयार-सी बह जाने दो,
अविरल आंसू की स्याही से,
रीता पन्ना लिख जाने दो |
(लेकिन,ना कुछ कहा गया,,,ना ही कुछ लिखा गया |)
और, यूँ ही घाट पे बैठे-बैठे,
न जाने कितने दरिया उठे
और कितने ही सिमट गए
छोड़ गए लहरों की सरगम |
_____हिमांशु
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