क्यूँ चली जाती हैं बेटियाँ,
छोड़ अपनी यादें यहाँ-वहाँ,,,
घर भर में हर सू लहराती
अपनी ख़ुशबू छोड़,,,,
हर कमरे में बिखेर
अपनी यादावरी की पंखुड़ियां,,
क्यूँ तितली सी उड़ जाती हैं बेटियां?
सहेजते से ये हाथ
उनकी छुट-पुट चीजें,
मानों बरसों पहले के
अपनी गोद में उनके
परस को समेटने लगते हैं,
यादों के पन्नों में
उंडेल ढेर सारे रंग
क्यूँ मन बेरंग कर जाती हैं बेटियाँ?
खिलखिलाती थी जो फ़िज़ा
खनकता था जो आँगन,
बात-बात में हँसने
की बनती थी जो वजह,
घर-आँगन कर सूना,
रुलाती छोड़ पीछे
क्यूँ सब नीरव कर जाती हैं बेटियाँ?