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तेरी यादों की लालिमा लिए

तेरी यादों की लालिमा लिए

मन के पूरब से
सूरज फिर उगा,
धड़कनें पंछी बन उड़ चलीं,
साँसें सुगन्धित बयार-सी
रोम-रोम महकाती बह चलीं |

वो आसमान में उड़ता
नन्हा-सा बादल,
शरारत से देख मुझे
मुस्कुराने लगा,,,
मानों कह रहा हो,
तेरे दिल की तरंगों से
उठती रौशनी के तारों को
गीत में ढलते देख लिया मैंने,
तेरे दिल की धड़कनों के
लरजते सितार को
संगीत में सजते
देख लिया मैंने,,,
और जैसे कह रहा हो,,,,
अब वहाँ क्या काम तेरा?
चल आजा,,,
उड़ चल मुझ संग
इस नीले अम्बर पे,
जहां दूर तलक
ना कोई ग़म,
ना ग़म का नामो निशाँ |
जब चाहे,
अपने प्यार का
दीदार किया करना |
शफक के आँचल को
समझ ले अपना आशियाना,
मेरी तरह तू भी
इसी तरह,
अभिसार किया करना |
सुनकर उस नटखट की बातें
बेसाख्ता लबों पे
तबस्सुम लहरा गया
और उड़ चली मैं,
जहाँ था वह नन्हाँ-सा बादल
समझता सा मेरी पीर को,,,,
____हिमांशु
तेरी यादों की लालिमा लिए

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