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अमावस की यामिनी,,,,,,


अमावस की यामिनी
पहन काला-सियाह लिबास
रोती अपनी बेनूरी पे
आती थी अम्बर के पास |

देख उसकी उदासी, मायूसी
अम्बर था बड़ा ही हैरां, परेशां,
क्या कहे, कैसे तसल्ली दे ?
आखिर 'था' तो अम्बर ही |
किस से गुफ़्तगू करे ?
चन्द्रिका भी नहीं थी
गयी थी हिमांशु सँग
धरती थी बहुत दूSSSSSSर |
बहुत सोचाSSS विचारा
अचानक ख्याल आया बयार का
बुला उसे, कर मशविरा
भेजा संदेसा धरती के पास |
सुन सारी कहानी
अमावस यामिनी की,,,
आनन-फानन में बुलवा भेजे
असंख्य ज्योतिर्पुंज धरा ने |
हरने को पीड़ा उसकी
जगमगा उठे झिलमिल दीप,,
जड़ दिए सुनहरे सितारे औ'
सुन्दर फुलकारियाँ
उसके सियाह लिबास पे |
चमक उठी, उमग उठी,
इठला उठी अपने ही
रूप-लावण्य पे,,,
अंतर्मन से अदा किया शुक्रिया
धरा औ' दीपों का
और चल पड़ी अपने पथ |
हाँ, बिछुड़ते समय
किया धरती ने एक वादा
'बिलकुल मायूस ना होना
साल में एक बार
तेरी पैरहन को
सुनहरे सितारों से
जड़ दूँगी |'
तब से हर दिवाली पे
जल उठते हैं अनगिनत दीप, औ'
अपने सियाह लिबास में लिपटी
झिलमिला उठती है
अमावस की रात |
पर मन में कहीं खलिश है
काश! ये चमक-दमक
मेरी अपनी होती
खैरात में मिली ना होती!!!
दुनिया वालों तक कैसे पहुँचाए,,,,
मन की ये बात
'बाहर की जगमग
भीतर के तमस को
हर नहीं पायेगी |
मन की अमावस को
पूनम बनाने हेतु
आत्मा का चिराग
रोशन करना होगा |
मेरी तरह साल में एक बार
जगमगाने से मन-तमस
दूर नहीं होगा|
जो चिरंतन उजाला चाहते हो
तो आत्म-दीप आलोकित करो |
फिर हर दिन, हर पल
दिवाली ही दिवाली होगी
किसी खैरात के मुन्तज़िर
नहीं होंगे सब |'
(यह ज्योति हर मानव में है,
बस ज़रुरत है तो उसके प्रज्वलन की |)
_____हिमांशु

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