मखमली-सी साँझ
मुस्कुरा रही दूर परबत पे |
शबनमी-सी फ़िज़ा
बिखरी जा रही पत्ते-बूटे पे |
सरसराती-सी हवा
मस्त हो डोल रही वादी में |
पंछियों का कलरव
रस घोल रहा बगियन में |
देख हसीं शाम को
रोक ही ना पाया ख़ुद को |
निकल आरामगाह से
वो उठा चाँद उफ़क़ पे |
_____Himanshu
मस्त हो डोल रही वादी में |
पंछियों का कलरव
रस घोल रहा बगियन में |
देख हसीं शाम को
रोक ही ना पाया ख़ुद को |
निकल आरामगाह से
वो उठा चाँद उफ़क़ पे |
_____Himanshu