वह खोई हुई अल्हड युवती
कभी-कभी यादों में घिरी
स्वयं को तलाशती है,,,
कितनी बदल गयी वह !
समय-रथ पर पीछे जा
खुद से भी अपरिचिता,,,
साँझ समय बैठी वह
दूSSSर डूबते सूरज को
अपलक देखा किये थी,,,
ज़िंदगी के पन्ने
यादों के झंझावात से
लगातार फड़फड़ा रहे थे,,,
कुछ भूली-सी दास्तानें
कसमसाती हुईं
फिर हरी होने लगीं थीं,,,
समय का पहिया
फिर से ले आया था
उन्हीं दहलीजों पे,,,
ज़ख्मों की टीसन
रिसते दर्द को
और हवा देती थी,,,
यादें जा के ना देती थीं
अश्कों का काफ़िला
फिर-फिर लौट आता था,,,
क्यूँ कर दे तसल्ली
कैसे मन को बाँधे
सोचती बैठी थी,,,
तभी सदा की तरह
उसे सामने पाया
शरारत संग मुस्कुराते,,,
मानों कह रहा हो
"आजा चलें फिर से
आसमानी सफर पे,
कुछ मैं कहूँ अपनी
कुछ तू सुना तेरी
यूँ ही चलते-चलते
गुज़रे ये साँझ अपनी"
और फिर,
बिसरा सभी ताप
चल पड़ी चंदा संग
तारों के नगर |
____हिमांशु