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दिल फ़रेब यादें,,,,,,


समंदर किनारे रेत पे
उकेरती बैठी थी वह
कुछ यादें,
बड़ी ख़ूबसूरत दिल फ़रेब,,,,
अक्सर झाँका करती थीं
दिल के दरीचे से ;
आज फ़ुर्सत में फिर से
उन्हें जीने का मन हुआ |
तभी लगा
कोई बुला रहा है,
चारों ओर नज़र दौड़ाई
कोई नहीं था,,
फिर यादों की पुरवाई
चलने लगी,,
फिर से लगा कोई है
जो कुछ कहा चाहता है,
पर कौन?
कोई नहीं था चहुँ ओर |
और जब
नीचे रेत पे नज़र गई
तो क्या देखती हूँ
चंचल लहरें सारी यादें
बहाए ले जा रही थीं |
रोका उन्हें ऐसा करने से
पर ना मानीं,
ले ही गयीं,,
जाते-जाते एक लहर बोली-
'हमारा भी तो सब
मिटा दिया इस सागर ने |'
मन मसोस बैठी ही थी कि
एक बूढ़ी लहर आके
पास बैठ गई, औ'
लगी बतियाने-
"ये सब नई-नई हैं
कुछ दिन पहले ही
नदी से चलके
समंदर में आ मिली हैं,,
ख़फ़ा हैं इस बात से
कि उनका तो वजूद ही
मिट गया |"
बूढ़ी लहर थोड़ा रुकी
औ' गहरी सांस भर बोली-
"मैंने कई दफ़ा समझाया
कि इसका एहसान मानो
शरण दी है इसने तुम्हें,
मेरे जैसी अनगिनत
बरसों बरस से
इसके आगोश में बसी हैं |
पर ये नहीं सुनतीं
आज के युग की हैं ना,
कहती हैं -
"ये शरणदाता नहीं
क़ातिल है हमारा,
हमारी कोमलता को
लीलने वाला है ये,
क्या दिन थे !
सब कुछ कितना सुंदर
इंद्रधनुषी रंगों में रंगा,
पहाड़, झरने,
हरे-भरे झुरमुट
पंछी, गीत,
सब छोड़ दिया,,,
अपना मीठापन
अपनी कोमलता
चंचलता सब
छोड़ दी,,,
किसलिए ??
इस खारेपन को
झेलने के लिए?
ये कहाँ ले आई तू
ऐ बेरहम ज़िंदगी?"
मैं कुछ कहूँ
उससे पहले ही
वह चल पड़ी वापस
बुदबुदाती हुई-
"शायद सच ही कहती हैं|"

____हिमांशु

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