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वो शामे-मंज़र आया है,,,,

 
आज फिर से वो शामे-मंज़र आया है
किसी की आँखों ने अश्क बहाया  है |

छुपा लिए फिर किसी ने आंसू बारिश में
दिल में फिर ग़म का सैलाब आया है |

याद उसकी आयी थी जो  अश्क  बनकर
ढलक गयी रुखसारों पे वो मोती बनकर |

याद की  तरह ग़र साथ होते वो भी
तो ये मौसम भी सौ-सौ रंग लाया है |

____हिमांशु महला

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