रात भर आसमां
लड़ियों में पिरो-पिरो
नीर बरसाता रहा|
कृष्ण-वसन में
सिमटी-सकुची शब,
दुनिया से नज़रें बचा
बैठी घाट किनारे,
नयन-नीर को
बरसते जल-बिन्दुओं में
मिलता देखती रही |
मन-पयोधि में गहरे
किसी कोने में छिपी
खामोश-सी तन्हाई की
सिसकती आह को
निश्शब्द करने की
भरपूर कोशिश करती रही
पर नाकामयाब रही |
तभी सुना कि
कड़कती बिजलियों
औ'
तेज़ हवाओं ने
बन साज़-ए-तरन्नुम
जज़्ब कर लिया
आह-ओ-सिसकन
का सिलसिला |
लेकिन सुबहा होने पर
क्या करेगी?
कैसे छिपाएगी सबसे
ये शबनमी चेहरा?
सोच ही रही थी
कि तभी
भोर की पहली किरणों ने
आ पीछे से, बन सखी
आँखें मूँद ली,
पलकों पे सजे मोती
अपने आँचल में
समेट लिए|
और वह
बन निशा से दिवा
अब फिर से तैयार थी,
दुनिया को
उजाले की राह
ले जाने को,
शबनमी-गम भूल जाने को|
जान गयी थी
इस अँधेरी दुनिया में
दिनकर भी तो
है उसके संग,
क्यूँ भूल जाती है उसे,
जो बिना कुछ कहे
आता है हर रात के बाद,
अंधेरों से उसे बचाने को,
रौशनी की शमाँ
जलाने को |
हल्का था मन
उजला था तन,
शुक्रिया ऐ दोस्त!
मुस्कुराता चल पड़ा सूरज
थमा खुशियों की सौगात,
अपनी डगर,
अपने नगर |
___हिमांशु
कृष्ण-वसन में
सिमटी-सकुची शब,
दुनिया से नज़रें बचा
बैठी घाट किनारे,
नयन-नीर को
बरसते जल-बिन्दुओं में
मिलता देखती रही |
मन-पयोधि में गहरे
किसी कोने में छिपी
खामोश-सी तन्हाई की
सिसकती आह को
निश्शब्द करने की
भरपूर कोशिश करती रही
पर नाकामयाब रही |
तभी सुना कि
कड़कती बिजलियों
औ'
तेज़ हवाओं ने
बन साज़-ए-तरन्नुम
जज़्ब कर लिया
आह-ओ-सिसकन
का सिलसिला |
लेकिन सुबहा होने पर
क्या करेगी?
कैसे छिपाएगी सबसे
ये शबनमी चेहरा?
सोच ही रही थी
कि तभी
भोर की पहली किरणों ने
आ पीछे से, बन सखी
आँखें मूँद ली,
पलकों पे सजे मोती
अपने आँचल में
समेट लिए|
और वह
बन निशा से दिवा
अब फिर से तैयार थी,
दुनिया को
उजाले की राह
ले जाने को,
शबनमी-गम भूल जाने को|
जान गयी थी
इस अँधेरी दुनिया में
दिनकर भी तो
है उसके संग,
क्यूँ भूल जाती है उसे,
जो बिना कुछ कहे
आता है हर रात के बाद,
अंधेरों से उसे बचाने को,
रौशनी की शमाँ
जलाने को |
हल्का था मन
उजला था तन,
शुक्रिया ऐ दोस्त!
मुस्कुराता चल पड़ा सूरज
थमा खुशियों की सौगात,
अपनी डगर,
अपने नगर |
___हिमांशु