आज फिर तारी थे
उदासी के मंज़र,
टीस-सी उठाते थे
यादों के खंजर |
देखकर उसको,
रुकती-सी हवाएँ
बरसने को आतुर
ग़म की घटाएं |
मन क्यूँ व्यथित
क्या थी टीसन ?
कैसी ये बेचैनी
क्यों थी छीजन ?
ऐ मेरे मौला !
नन्हें-से दिल ने
सिर्फ़ इतना भर
ही तो चाहा था |
हँसती-सी सुबहा में
खिलती-सी फ़िज़ा हो,
लरज़ती-सी शामों में
महकती-सी अदा हो |
तनहा-सी वह बदली
यही सोचा किये थी,
गमज़दगी पे अपनी
रोया ही किये थी |
आके तभी पीछे से
मूँद लिए दो नयना,
पोंछ दिए वे आंसू
चाहते थे जो बहना |
कितना अपना है
सच्चा साथी है,
कितना प्यारा है
ये नटखट चन्दा |
____हिमांशु
रुकती-सी हवाएँ
बरसने को आतुर
ग़म की घटाएं |
मन क्यूँ व्यथित
क्या थी टीसन ?
कैसी ये बेचैनी
क्यों थी छीजन ?
ऐ मेरे मौला !
नन्हें-से दिल ने
सिर्फ़ इतना भर
ही तो चाहा था |
हँसती-सी सुबहा में
खिलती-सी फ़िज़ा हो,
लरज़ती-सी शामों में
महकती-सी अदा हो |
तनहा-सी वह बदली
यही सोचा किये थी,
गमज़दगी पे अपनी
रोया ही किये थी |
आके तभी पीछे से
मूँद लिए दो नयना,
पोंछ दिए वे आंसू
चाहते थे जो बहना |
कितना अपना है
सच्चा साथी है,
कितना प्यारा है
ये नटखट चन्दा |
____हिमांशु