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सुबहा आएगी,,,,


 फिर से
(डायरी के पुराने पन्नों से)
सुबहा आएगी,,,,
दूSSSर पश्चिम के
क्षितिज पर ,,,,
लालिमा ढल गई
सांझ सुरमई हो गयी,,
पंछियों के डेरे
घोंसलों में सिमट गए,,
खूबसूरत पर्बतों पे
मखमली साए छा गए |

दूSSSर कोई मांझी
मिलन-गीत गा उठा,,,
दिन भर का थका पंथी
मंजिल की ओर चल पडा,,
आस मिलन दिल में जगा
पाँव तेज़ धरने लगा |

दूSSSर अब्र की शैय्या पे
सितारों के आँचल में
दिन भर का थका सूरज
सांझ के रथ हो सवार,
मौन हो सोने चला,,,
रात चाँद के नाम कर
ख्वाबों में खोने चला |

सांझ की दहलीज पे
रात दस्तक देने लगी,
खोलते ही द्वार धरा के
चारों ओर छा गयी,,,
दूर तलक ख़ामोशी की
सियाह चादर छा गयी,,,,
मानों पूरी कायनात ही
ओढ़ लिहाफ सो गयी,,,

निशब्द इस कालिमा से
ज़रा भी घबराना नहीं,,,
कमलिनी के फूल जैसी
आस धर लेना सभी ,
जल्द उजाला हो चलेगा
फिर से सुबहा आएगी ,,
उसी अनूठी लालिमा से
पूरा जग नहलाएगी |

____हिमांशु महला

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