होरी गई यदि कोरी हमारी, किसी को गुलाल उड़ाने न दूँगी।
कैद कराऊँगी मंजरि को, ढप ढोल पै थाप लगाने न दूँगी।
फूलन दूँगी नहीं सरसों तुम्हें, कोयल कूक लगाने न दूँगी,
बांध के रखूँगी माघ सीवान में, फागुन गांव में आने न दूँगी।
कैद कराऊँगी मंजरि को, ढप ढोल पै थाप लगाने न दूँगी।
फूलन दूँगी नहीं सरसों तुम्हें, कोयल कूक लगाने न दूँगी,
बांध के रखूँगी माघ सीवान में, फागुन गांव में आने न दूँगी।
---- महाकवि चंद्रशेखर