-->

"वासंती बयार"

वसंत शब्द से ही
ध्वनित होता
स्वर्णिम आभ लिए
जगमगाता उपवन,
आम्र मंजरियों की
नशीली रतिगंध का मौसम।

मन-बगिया में सजे
केसर, कदंब और कचनार ,
बाहर बगिया में झूमें
पलाश, सरसों औ' अमलतास |
पछुआ के सरसराते स्पर्श से,
खेतों में
सहज ही मुस्काता वसंत |

देवदारू वृक्ष की
श्यामल सघन छाया,
अंगूरों की रसमयी लता, 
अग्निवर्णी पुष्पों से लदा अशोक,
पत्तियों के रेशे-रेशे में
प्रगाढ़ होती हरीतिमा,
चहुँ ओर प्रस्फुटित होते
नरम-नाज़ुक अंकुर,
बैंगनी आभा संग
मुस्काती कोमल कोंपलें,,,,
देख ये अनुपम छटा
एक अव्यक्त सुवासित गंध
मन में रचे एक सम्पूर्ण
















सुनहरा मौसम |

जब पलाश वन में दहके
औ' निशा लगे टाँकने
सेमल के अंगों पर लाल सितारे,
जब शाम सिन्दूरी याद दिलावे
परदेस गए प्रियतम की
तो समझ लेना हे सखी !
मन के द्वारे पर हौले से
दस्तक हुई वसंत की।

Nemo enim ipsam voluptatem quia voluptas sit aspernatur aut odit aut fugit, sed quia consequuntur magni dolores eos qui ratione voluptatem sequi nesciunt.

Disqus Comments