-->

कातिलाना बर्फ़ीली सांझ

कोहरे की चादर बिछाती
ज़र्रे-ज़र्रे को कँपकपाती
वो देखो तो,चली आ रही
कातिलाना बर्फ़ीली सांझ |

सूरज को दे पच्छिम में विदा
चंदा को दे आने की सदा
दिशि-दिशि से बटोरे ला रही
चुन-चुन कर बर्फीली अदा  |

घायल सभी इसके वार से
ढूंढें गरम कोने, बंद कमरे |
पर उनका क्या जो हैं बैठे
आसमाँ के नीचे सिकुड़े-डरे |

आती हर शाम डराती है जिन्हें
डूबता सूरज थर्राता है जिन्हें |
माँ की छाती से चिपका बच्चा
पौ फटने पे रुलाता है जिन्हें |

____हिमांशु महला

Nemo enim ipsam voluptatem quia voluptas sit aspernatur aut odit aut fugit, sed quia consequuntur magni dolores eos qui ratione voluptatem sequi nesciunt.

Disqus Comments