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दर्द की तासीर


दर्द की तासीर ज़रा ढल जाने तो दे,
शम्म-ए-फ़ुरक़त ज़रा पिघल जाने तो दे,,

जागे हैं गई शाम से जो ग़म-ए-दरिया,
समंदर की गोद में उन्हें फिसल जाने तो दे,,,

ओढ़ा है चेहरे पे क्यूँ तबस्सुम का लिबास,
मख़मूर-ए मसर्रत थोड़ी छलक जाने तो दे,,

कुछ ज़ख्मों को तो कुछ 'हरा' ही रहने दे,

ज़िन्दगी के सही मायने समझ जाने तो दे,,,


चुरा के पुरनम आँखों से छलकते पैमाने 
लबों पे तबस्सुम का दरिया मचल जाने तो दे,,,

मन की ज़मीं को बना ज़र्द रेशमी पैरहन,
कशीदे की तरह नाम उनका कढ़ जाने तो दे,,,

अब छोड़ भी दे ये मायूसी, ये गमज़दगी, 
औ' सुकूत-ए-मुसलसल मचल जाने तो दे,,,

____हिमांशु

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