-->

वे नीम-शब नज़रें



वे नीम-शब नज़रें जब उठीं फ़लक की ओर
फैला दिया उफ़क ने सितारों के जाल को |

************************************

बह गयी थी इक दिन तन्हाई भी जज़्बात में,
चश्म-ए-नम से कुछ बूँदें गिर पड़ीं बरसात में |
बरखा में मिली वे बूँदें यूँ असर कर गयीं
जहाँ भी गिरी शाख पर, वे फूल बन गयीं |

_____हिमांशु

Nemo enim ipsam voluptatem quia voluptas sit aspernatur aut odit aut fugit, sed quia consequuntur magni dolores eos qui ratione voluptatem sequi nesciunt.

Disqus Comments