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वो बन के सांध्य तारा

किसी उदास मौसम में
किसी वीरान लम्हे में
वो बन के सांझ-तारा
चुपके से दबे पाँव
काश ! उतर आये हौले से
दिल के गीले आँगन में |

रूख़सारों पे ढुलकते आँसू
मुस्कुराते-से लगें,
छलती-सी मुस्कान में
हो छिपी दर्दीली चीख़,
वो बनके चाँद गगन का
उतर आए मेरे अंगना !

वो बन के सांध्य तारा

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