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ये यादें भी ना


 ज़ुबान जब भी खामोश-सी हो जाती है
तो नज़रें कुछ कहती हैं मद्धम-मद्धम|
मखमली ख्वाबों के सौ-सौ दरीचे
खूबसूरती से सजते हैं पलकों तले |
गहरे राज़ बयाँ कर जाती हैं बिन कहे,
तो कई राज़ छुपा भी लेती हैं अक्सर |
शफाफ-सी इन गहरी आँखों में, अनगिनत
अबूझ पहेलियाँ भी बसेरा डाले होती हैं |
नदी किनारे यादों के समंदर छलकाती
अनथक-अनवरत बहती भी हैं ये आँखें |
कभी समंदर से भी गहरी, तो कभी
रेगिस्तान की तनहाइयों-सी
दूर-दूर तक पसरी होती हैं ये नज़रें |
ख़ुदा ख़ैर करे!!!!
ये यादें भी ना, बड़ी बेरहम होती हैं
नहीं आतीं तो नहीं आतीं,
और आतीं हैं तो बस,,,,,,,
______हिमांशु

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