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रविवार की भोर,,,,,

लो आ ही गयी
सप्ताह से प्रतीक्षित
सलोनी सुंदर
रविवार की भोर |

एक अलसाई-सी
अंगड़ाई ले उठीं
उषा, अरुणा औ'
प्यारी-सी आभा |

एक ठहराव लेकर
चल रहा सूरज भी
मानों कह रहा हो
साँस लो जी भर-भर |

पुरबाई भी अलसाई-सी
उलझी है शाखों में,
रुक-रुक के उमग रही
फूलों औ' बागों में |

एक नयी-सी उमंग
भर देती रोम-रोम में,
एक पूरा दिन कर देती
जन-जन के नाम ये |

तो चलिए जी भर के
आनंद ही आनंद उठाइए,
हँसिये-खेलिए बच्चों संग
नए पकवान भी खाइए |

शुभ-दिन, शुभ-शुभ रविवार!

_____हिमांशु

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