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मंजिल की तलाश में,,,,

रात,,,,काली रात
जैसे सब कुछ ऊँघ रहा हो
चारों तरफ हर चीज पे
काली स्याही-सी पुती हुई रात |

रात,,,,,
एक काले चंदोबे की मानिंद
हर शै पर औंधी पडी है|
सूत की बनती-टूटती
डोरियों की तरह
आसमाँ से झरती
बारिश की बूँदें,
भीगती कोलतार की सड़क,
हवा में कांपती छोटी घास,
लैंप पोस्ट, तार,
सब एक हहराती
धुन एवं धुंध में डूबे |
इस अँधेरी रात में
कहाँ है वो ध्रुव-तारा,,
जो दिखाता राह
उस भटकते बंजारे को
उस दिशाहारे को,,
जो चला था
अपनी
 
मंजिल की तलाश में |
___हिमांशु

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