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क्षितिज पर उठे हैं कुछ कजरारे बादल

















क्षितिज पर उठे हैं
कुछ कजरारे बादल,
परत दर परत
चांदनी बस रही है,
झरोखे से तकता है
चन्दा ज़मीं पर,
ये कैसा अनोखा
जतन हो रहा है !

हैं नहला रहीं
हर सुमन को तुषारें,
बरसती हों जैसे
ज़मीं पर बहारें,
शाख़-दर-शाख़
पंछियों की कतारें
शयन पूर्व कितना
यतन हो रहा है |
मधुर मुक्त संध्या
सुगन्धित बयार है,
दिवा का कितना सुन्दर
गमन हो रहा है,
उफ़क़ पे उगे हैं
कुछ अलसाये से सपने,
नयन का नयन से
मिलन हो रहा है |
____हिमांशु

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