-->

आसमान से बरसती शबनम

आसमान से बरसती शबनम,
बिछ जाती चहुँ ओर
मोती बन,
सूरज की
सतरंगी किरणें आ
पिरो देतीं
रंगों की लड़ियाँ उनमें |


खुशबू की
ख़ामोश बातें,,,
चंचल हवा की
मख़मली सरगोशियाँ,,,
इठलाती बूंदों का
संगीतमय तरन्नुम,,,
नादान पुष्पों का
चितचोर तबस्सुम,,,
ये नज़ारे, ये इशारे
जगाते हैं हर मन में
कुछ अहसास,,
वे अहसास
जो
नहीं चाहते कोई भाषा
नहीं चाहते सम्प्रेषण,,
ना सह अनुभूति,
ना अंतिम निर्णय,,,





































वे तो नदी के
अनथक,
सतत प्रवाह के मानिंद,
उत्ताल तरंगित
हो-हो कर
ताउम्र संग बहते हैं,
कल-कल करते,
आनंदित होते,
आनंदित करते |
_____ हिमांशु

Nemo enim ipsam voluptatem quia voluptas sit aspernatur aut odit aut fugit, sed quia consequuntur magni dolores eos qui ratione voluptatem sequi nesciunt.

Disqus Comments