वो दूर आसमां में
टूटा इक सितारा
आह भरता, नीचे
गिर रहा था बेचारा,
आह सुनने वाला
ना था कोई,
वरन,
मुन्तज़िर थे कई
किसी ना किसी
इल्तिज़ा संग |
प्रश्न उपजा मन में,,,,
अगर वो दे सकता
तो खुद
क्यूँ टूट जाता ?
वैसे भी,
किसी की टूटन से
कुछ हासिल करना
क्या ठीक होगा?
दरअसल,
क़दर किरदार की
होती है,
वरना,
कद में तो
अक़्सर
साया भी इन्सान से
बड़ा होता है |
ख़ुद पर
इत्मीनान की
हुनरपरस्ती
ज़रूरी है,
क्यूँकि,
सहारे कितने भी
सच्चे हों
चलना तो
ख़ुद के पैरों पर
ही पड़ता है |
____हिमांशु