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ये मन भी ना,,,,,

ये मन भी ना????
कभी अनमना,
तो कभी खिला-खिला
मन ना हुआ,
राधा के जूडे का फूल हो गया!

कभी कृष्ण-सा बांसुरी बजाता,
कभी बुद्ध-सा मुस्कान सजाता,
कभी शिव-सा भोला-भाला
अपनी ही धुन में चलता जाता,,,
पग-पग कितने ख्वाब सजाता
चंदा-तारे राह बिछाता,,,
अपनी दुनिया खुद ही बनाता
हँसता, रोता औ' पछताता,,,
क्यूँ रे मन!
काहे इतने रूप सजाता?
_____हिमांशु

Nemo enim ipsam voluptatem quia voluptas sit aspernatur aut odit aut fugit, sed quia consequuntur magni dolores eos qui ratione voluptatem sequi nesciunt.

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