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चलें दूSर पर्बतों के पार,,,,,,

आइये मित्रगण!
आज एक अलबेली पिकनिक हो जाए |
चलें दूSर पर्बतों के पार
मचलती लहरों से भर मुट्ठी मस्ती लें
सागर के अंतस से ढेर मोती समेट लें |
बारिश की बूंदों को हथेली में समेट कर
प्यासी हर शै पे, आंचल भर के डाल दें |
हवा की सरगोशियाँ पल्लू में बाँध कर,
टोली की चाल को थोड़ी औ' रफ़्तार दें|
गुलशन की खुशबू से खुद को महका कर
परबत की फिज़ा को थोडा और संवार दें |
अंतस की चिर-तपिश को बूंदों में ढाल कर
पिघला सब तापों को, उन्मुक्त हो सांस लें |
वादी की बयार और पंछियों के गुंजार को,
पग-पग महसूसते औ' पल-पल सुनते चलें|
आसमां से चन्दा को पिकनिक की दावत दें
सितारों की महफिल से ज़्यादा सत्कार दें |
अब चलो जल्दी करो, सांझ है ढलने चली,
सप्ताहांत बिताने ये टोली पिकनिक चली|
______हिमांशु महला

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