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जीवन का काफ़िला,,,,,

अक्सर यूँ रुकता है
जीवन का काफ़िला,
उजलाती कुछ यादें
सिमटता सिलसिला |
दादी की कहानियाँ,
नानी के वे किस्से,
वे परियाँ, राजा-रानी
सब थे कितने सच्चे |
तितलियों-सा मन
फूलों-सा महकना,
कल्पनाओं के पंख
चिड़ियों-सा चहकना |
बारिशों की वे फुहारें
गर्मियों की वे बहारें,
सर्दियों की नरम रजाई
धूप के टुकड़ों की ढुंढाई |
सखियों संग झगड़ना
पल में मान भी जाना,
कैसी भी कोई लड़ाई
आता था भूल जाना |
मिला किसी को फिर से
जो छूटा बहुत ही पीछे?
पाया किसी ने फिर से
जो खोया बहुत ही पीछे?
क्यों लहराता ये समंदर
यादों की सीपियों संग,
हटते नहीं क्यों मंज़र
यादों की वीथियों से ?
चाहत उसी गगन की
उगे फिर वही सूरज
सितारे भी वही हों
चंदा की चांदनी संग |
मेरा कभी ये सपना
तुमको मिल जो जाये
देना मेरा ठिकाना
कहना कि मिल के जाए |
_____हिमांशु महला

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